विवेक जैविक कृषि

तरल जैविक खाद

  1. संजीवनी

क) संजीवनी : यह कम खर्च में बनने वाला जैविक तरल खाद है। इस तरल खाद को गाय का गोबर, गो-मूत्र एवं पानी को 1:1:2 के अनुपात में मिश्रित कर बनाया जाता है। इस मिश्रण को मिट्टी का घड़ा अथवा प्लास्टिक बर्तन में सड़ने के लिए 7-9 दिनों तक छोड़ देते है। सड़ने के दौरान दिन में दो बार, डंडे से घड़ी की दिशा में एवं विपरित दिशा में 10 बार करके हिलाते हैं। इस घोल को मातृ संजीवनी कहते हैं।

अ) बीज संजीवनी - मातृसंजीवनी से 20% जलीय द्रव तैयार करके बीज संजीवनी बनाया जाता है।  पहले बीज को बीज संजीवनी घोल में निश्चित समय तक डूबों कर रखते है। इसके बाद उसे छाया में सुखा कर जमीन में लाइन से बुआई की जाती है। बीज उपचार करने से मिट्टी या बीज में रहने वाले हानिकारक कीट एवं फफूंद से बीज को सुरक्षा मिलती है। इसके साथ-साथ इस घोल के उपयोग से पौधों को पोषक तत्व व हारमोन्स भी प्राप्त होते हैं, जो की पौधों में अंकुरण एवं अच्छी वृद्धि के लिये सहायक होते हैं।

ब) पौध संजीवनी - मातृ संजीवनी से 5% और 10% जलीय द्रव  द्वारा शस्य संजीवनी या पौध संजीवनी तैयार करते हैं। तैयार हुये घोल को अच्छी तरह से छान लें। प्राथमिक अवस्था में  30 दिन से कम उम्र के पौधों पर 5% की दर से पौध संजीवनी का छिड़काव करें। द्वितीय अवस्था में 30 दिन से अधिक उम्र के पौधों पर 10% की दर से  पौध संजीवनी का छिड़काव करें । इस द्रव को माह में दो बार तब तक छिड़काव करें जब तक पौधा परिपक्व न हो जाय। मातृ संजीवनी घोल को जमीन पर सिंचाई के पानी के साथ मिलाकर भी व्यवहार किया जा सकता है।

  1. शस्यगव्य: गाय का गोबर, मूत्र, सब्जी के छिल्के अथवा फसलों के अवशेष एवं पानी को 1:1:1:2 अनुपात में मिलाते हैं। 10-12 दिनों तक इसे सड़ने के लिए छोड़ देते है। इस घोल को मातृ शस्यगव्य कहते हैं। सब्जी का छिल्का एवं फसलों के अवशेष को मिश्रण में मिलाने से पूर्व छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लेते है। इस मिश्रण के ५ज्ञ् घोल का व्यवहार 30 दिन से कम उम्र वाले पौधों में करते है तथा 10% घोल का व्यवहार 30 दिन से अधिक उम्र वाले पौधों पर करते हैं। इस मिश्रण का उपयोग बीज बोने के पूर्व खेत की मिट्टी को उपचारित करने तथा बीज बोने के बाद सिंचाई के जल के साथ खेत में भी उपयोग किया जा सकता है।
  2. पंचगव्य : संस्कृत में पंचगव्य का अर्थ पाँच पदार्थ जो गाय से प्राप्त होते हैं। इसमें गाय का गोबर, गोमूत्र , दूध, दही एवं घी को 5:3:2:2:1 के अनुपात में मिलाते हैं। इस मिश्रण को सड़ने के लिए 7-8 दिनों तक छोड़ देते हैं।

सड़ने के दौरान डंडे की सहायता से दिन में दो बार घड़ी की दिशा में एवं विपरीत दिशा में 10 बार घुमाकर मिलाते हैं। इस मिश्रण को घड़ा अथवा चौड़े मुँह वाले प्लास्टिक के बर्तन में रखना चाहिए। इस मिश्रण का व्यवहार 30 दिन से कम उम्र वाले पौधों पर 1% की दर से  करते हैं तथा 30 दिन से अधिक उम्र के पौधो पर 3% की दर से करते हैं। इस घोल का छिड़काव महीने में दो बार पौधों पर करते हैं। यह मिट्टी की जैविक गतिविधि को बढ़ाता है तथा साथ ही साथ पौधों के लिए आसानी से पोषक तत्वों भी प्रदान कराता है। छिड़काव से पूर्व  मिश्रण को अच्छी तरह से छान लेना चाहिए।

  1. कुनापाजाला: संस्कृत में कुनापा का अर्थ है दुर्गन्ध जो सड़े हुए जीव-जन्तु या पशुओं से आती है तथा जाला मतलब जल अर्थात कुनापाजाला का अर्थ दुर्गन्धयुक्त जल होता है। इस मिश्रण को गाय के गोबर, गोमूत्र, मृत पशु-पक्षी के अवशेष अवशेष (मछली, मुर्गी अथवा अन्य जानवर) एवं पानी से बनाया जाता है। इन सभी सामग्रियों को 1:1:1:2 के अनुपात मिला कर इस मिश्रण को छायादार जगह में 25-30 दिनों तक सड़ने के लिए छोड़ देते हैं। सड़ने के दौरान नियमित रूप से दिन में दो बार किसी छड़ अथवा डंडे की सहायता से घड़ी की दिशा में एवं विपरीत दिशा में हिलाते हुए मिलाया जाता है। इस मिश्रण को फसलों में 10-15 दिनों के अन्तराल पर 1% की दर से व्यवहार करते हैं।

उपरोक्त मिश्रणों में गोबर के स्थान पर मुर्गी या बकरी का अवशिष्ट भी प्रयोग कर सकते हैं परन्तु इसमें सड़ने में 3-4 दिन अधिक समय लगता है। उपरोक्त सभी मिश्रण को सर्दी के मौसम में तैयार करने पर 5-6 दिन अधिक समय लगता है। इन मिश्रणें को बनाने में माड़,चावल धोने वाले पानी, सड़े फल-सब्जी, ताड़ी इत्यादि मिलाने से इसमें उर्वरा की मात्रा तथा दाल की चुन्नी, सरसों मूँगफली व सोयाबीन की खली मिलाने से इन मिश्रणों में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे इनकी गुणवत्ता कार्यक्षमता बढ़ जाती है।