विवेक जैविक कृषि

जैविक खेती के सिद्धांत

  1. स्वस्थता का सिद्धांत

जैविक खेती मिट्टी, पेड़, पौधा, पशु-पक्षी, मानव एवं तथा धरती के स्वास्थ्य को टिकाऊ व अक्षुण्ण रखते हुए सबको एक अविभाज्य इकाई के रूप में मान्यता देती  है। इसके सभी स्वरूप जैसे फसल उत्पादन, खाद्य प्रसस्ंकरण, वितरण सभी छोटे से छोटे जीवों से लेकर मानव तक पर्यावरणीय स्वस्थता को सुदृढ़ता प्रदान करते हैं। जैविक खेती का उद्देश्य स्वस्थ भोजन  को सुनिश्चित करना है, अतः इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार के रसायन उपयोग के लिए कोई जगह नहीं है।

  1. पर्यावरणीय सिद्धांत

जैविक खेती जीवंत पर्यावरण, प्राकृतिक जीव चक्र व उनके बीच अक्षुण्ण समन्वय तथा सबके संधारण के सिद्धांत पर आधारित है। इस नियम के अनुसार संपूर्ण उत्पादन प्रक्रिया प्राकृतिक तथा अप्राकृतिक स्रोतों के पुनः प्रयोग पर निर्भर करती है। जैविक खेती में प्रत्येक जीव स्वरूप का पालन पोषण उत्पादन प्रक्रिया के पर्यावरण के साथ सामंजस्य कर सुनिश्चित किया जा सकता है। चारागाह, जैविक खेत, तथा जंगल क्षेत्र भी इस चक्र से जुड़कर प्रकृति के संतुलन में सहायक हो सकते हैं।

  1. समता का सिद्धांत

जैविक खेती साझा पर्यावरण तथा समान जीवन अवसर को सुनिश्चित करते हुए सभी सम्बन्धों में सम्भाव स्थापित करता है। इस सिद्धांत के अंतर्गत वे सभी लोग जो जैविक खेती से जुड़े हैं मानवीय मूल्यों को सर्वोपरि रखते हुए किसान, प्रसस्ंकरण कर्ता, वितरक तथा उपभोक्ता इत्यादि के साथ न्यायपूर्ण समान सम्बन्ध व सम्मान सुनिश्चित करता है।

इस सिद्धांत के अंतर्गत यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि पशुओं को भी अच्छा आवास तथा पर्यावरण मिले जिससे वे एक अच्छे वातावरण में अपनी सभी प्राकृतिक आवश्यकताएं भली-भांति पूरी कर सके। सभी प्रकृति प्रदत संसाधनो का उत्पादन व उपयोग इस प्रकार किया जाये जो पर्यावरणीय, सामाजिक तथा आर्थिक रूप से न्यायसंगत व स्वीकार्य हो तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए संसाधनों को संजो कर रखें ।

  1. परिचर्या का सिद्धांत

इस सिद्धांत के अंतर्गत जैविक खेती प्रबंधन प्रक्रिया में सावधानी पूर्वक पूरी निष्ठा व उत्तरदायित्व के साथ यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि पूरी प्रक्रिया आज की आवश्यकता पूर्ति के साथ-साथ पर्यावरण मित्र हो और आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य की भी देखभाल करे। जैविक प्रबंधन में विभिन्न अवयवों की कार्यक्षमता बढ़ाकर उत्पादन बढ़ाया जा सकता है, परंतु यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि यह संसाधनों के दोहन व किसी के भी स्वास्थ्य की कीमत पर तो नहीं हो रहा है। इसके लिये समय-समय पर नई तकनीकों का समावेश तथा पुरानी तकनीकों का मूल्यांकन जरूरी है। किसी भी नई तकनीक को अपनाने से पहले पूर्ण रूप से यह सुनिश्चित किया जाना जरूरी है, कि इसके प्रयोग से पर्यावरण तथा जीवन के किसी भी अंग पर कोई प्रतिकूल प्रभाव तो नहीं होगा।