विवेक जैविक कृषि

जैविक खेती की आवश्यकता और लाभ

  1. विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या एक गंभीर समस्या है। बढ़ती हुई जनसंख्या के भोजन की आपूर्ति के लिए मानव द्वारा खाद्य उत्पादन की होड़ में अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए तरह-तरह की रासायनिक खाद्य, जहरीले कीटनाशकों के उपयोग से प्रकृति के जैविक और अजैविक पदार्थो के आदान-प्रदान के चक्र को पारिस्थितिक तंत्र को  प्रभावित किया है। जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो गयी है वातावरण प्रदूषित हुआ है और मनुष्य के स्वास्थ्य में गिरावट आयी है।

    प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकूल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी, जिससे जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान का चक्र निरन्तर चलता रहा था, जिसके फलस्वरूप जल, भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होते थे। भारत वर्ष में प्राचीन काल से कृषि के साथ-साथ गौ-पालन किया जाता था।जिसका  प्रमाण हमारे ग्रंथो में प्रभु कृष्ण और बलराम हैं। कृषि एवं गोपालन संयुक्त रूप से अत्याधिक लाभदायी है, जो कि प्राणी मात्र व वातावरण के लिए अत्यन्त उपयोगी है । परन्तु बदलते परिवेश में गोपालन धीरे-धीरे कम हो गया तथा कृषि में तरह-तरह की रासायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग हो रहा है। अब हम रसायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों के उपयोग के स्थान पर जैविक खादों एवं दवाईयों का उपयोग कर अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते है, जिससे भूमि, जल एवं वातावरण शुद्ध रहेगा और प्रत्येक जीवधारी स्वस्थ रहेंगे।

    जैविक खेती से होने वाले लाभ

           (क) कृषकों की दृष्टि से लाभ

    1. भूमि की उपजाऊ क्षमता में बढ़ोतरी होती है।
    2. सिंचाई अंतराल में कमी आती है।
    3. रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होती है।
    4. फसलों की उत्पादन क्षमता बढती है ।

           (ख) मिट्टी की दृष्टि से लाभ

    1. जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है।
    2. भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती है।
    3. भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होता है ।

     

           (ग) पर्यावरण की दृष्टि से लाभ

    1. भूमि के जल स्तर में वृद्धि होती है।
    2. मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण मे कमी आती है।
    3. कचरे का उपयोग, खाद बनाने में, होने से बीमारियों में कमी आती है।
    4. फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि होती है।
    5. अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद की गुणवत्ता पर खरा उतरना।