विवेक जैविक कृषि

पलवार (मल्चिंग)

मृदा सतह पर प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से डाला गया पादप अवशेष या अन्य पदार्थ मल्च के नाम से जाना जाता है। मल्च के रूप में प्रयुक्त होने वाले पदार्थ है - फसल अवशेष पत्तियाँ, घांस-भूसा, तना डंटल, प्लास्टिक फिल्म आदि। मल्चिंग करने से जलनिकाय को नियंत्रित कर सकते है। अत: स्पंदन को बढ़ा सकते है, वाष्पीकरण को कम कर सकते है, खरपतवार नियंत्रण कर सकते है, मृदा ताप को नियंत्रित कर सकते है आदि। मिट्टी को सूखा पुआल, पत्ता, अनुपयोगी जूट के बोरे, भूसी, घास-फूस या खरपतवार के पत्तों आदि से ढक कर रखने की क्रिया को पलवार(मल्चिंग) कहते हैं।

इसके निम्न लिखित लाभ है -

  • मिट्टी की नमी (आर्दता) बनी रहती है।
  • खरपतवार का प्रकोप कम होता है।
  • यह मिट्टी को तापमान घटने या बढ़ने के कुप्रभावों से बचाता है, जिससे जलवायु समतुल्य कृषि को बढ़ावा मिलता है।
  • मल्चिंग से जमीन का पानी वाष्प बनकर नहीं उड़ पाता है, बार-बार सिंचाई भी नहीं करना पड़ती है।
  • इसके नीचे बहुत सारे लाभकारी कीट व फफूंद तथा जीवाणु आश्रय लेते है, जिससे फसल में हानिकारक कीट पतंगों  की रोकथाम हो जाती है तथा फसल में जीवाणुओं से रक्षा प्राप्त होती है।
  • कुछ समय के बाद मल्चिंग का अवशेष मिट्टी में खाद के रूप में मिलकर वहां की उर्वरता शक्ति को बढ़ाता है।