खरपतवार वह पौधा है, जो किसी भी परिस्थिति में कृषि के लिए लाभदायक की तुलना में अधिक हानिकारक होता है। खरपतवार फसलों से जल, सूर्य का प्रकाश, स्थान, और पोषक तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा करके पोषक तत्वों के अधिकांश भाग को शोषित कर लेते हैं जिसके कारण फसल की विकास गति धीमी पड़ जाती है तथा पैदावार कम हो जाती है। खरपतवार फसलों के लिए हानिकारक कीटों के लिए पराश्रयी पौधों के रूप में कार्य करते हैं। इसके अलावा फसल कटाई के समय परिपक्व खरपतवार भी साथ में आ जाते हैं और उत्पाद की गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं।
अतरू उपयुक्त समय में खरपतवार प्रबंधन अतिआवश्यक है। खरपतवारों की रोकथाम से न केवल फसलों की पैदावार बढ़ाई जा सकती है, बल्कि उसमें निहित प्रोटीन, विटामिन, आदि पोषक तत्वों की मात्रा एवं फसलों की गुणवत्ता में भी वृद्धि की जा सकती है।
खरपतवार के हानिकारक प्रभाव:
खरपतवार निम्न प्रकार से प्रभाव डालती है।
- खरपतवार के बीजों का अंकुरण जल्दी होता है तथा इसके पौधे फसलों के पौधों की तुलना में अधिक तेजी से वृद्धि करते हैं जिसके कारण खरपतवार पौधों के साथ सूर्य के प्रकाश, नमी, स्थान तथा पोषक तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।
- यदि कोई प्रबन्ध नहीं किया गया है तो खरपतवार फसल के पौधों के साथ प्रतिस्पर्धा करके अलग-अलग फसलों की उपज में 5% से लेकर 50% तक कमी कर सकते हैं।
- कुछ खरपतवार कीटों के लिए पनाहगाह उपलब्ध कराने और कुछ रोगजनकों के लिए मेजबान पौधों के रूप में काम करते हैं जिससे कीटों को संख्या बढ़ाने में सहायता मिलती है। जैसे एफिड, बीविल, सफेद मक्खी आदि के लिए जंगली जई, जंगली सरसों, बारहमासी घास, जंगली गाजर I
- खरपतवार भूमि में डाले गए खाद की क्षमता को कम कर देते हैं जिससे उपज में कमी आ जाती है।
- ये सिंचाई के लिए फसल को दिए गए पानी के प्रवाह में बाधा पहुंचाते हैं जिससे सिंचाई की आवश्यकता बढ़ जाती है।
- फसल कटाई के समय परिपक्व खरपतवार के बीज भी साथ में आ जाते हैं जिससे ये उत्पाद की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।
- खरपतवार के नियंत्रण के उपायों के रूप में मजदूरों, उपकरण और प्रबंधन की आवश्यकता होती है जिससे फसल उत्पादन की लागत बढ़ जाती है।
- कुछ खरपतवार हानिकारक रसायन उत्सर्जित करते हैं जिससे फसलों के पौधों, मिट्टी, इंसान और अन्य सूक्ष्म जीवों पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है। जैसे - कांग्रेस घास के शरीर के संपर्क में आने पर त्वचा में एलर्जी हो जाती है।
- कुछ खरपतवारों को जब दुधारू जानवरों द्वारा खाया जाता है तो दूध में एक अवांछनीय गंध आ जाती है। जैसे – धतूरा।
खरपतवार नियंत्रण की विधियाँ:
एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन
- समस्याओं के निदान के लिये केवल एक तरीके को अपनाने के बजाय सस्ते एवं आसानी से उपलब्ध सभी साधनों का समन्वसय किया जाना चाहिए। इसमें शस्य क्रियायें, यांत्रिक क्रियायें, जैविक क्रियायें तथा बीजोपचार व अवरोधी किस्मों का प्रयोग आदि सम्मिलित हैं।
- जो साधन अपनाये जायें वह न केवल प्रभावी हों बल्कि कम खर्चीले भी हों तथा जिनसे वातावरण प्रदूषित न हो।
- गर्मी में गहरी जुताई करके फसलों एवं खरपतवारों के अवशेष को नष्ट कर देना चाहिए जिससे कीटध्रोग के अवशेष उन्हीं के साथ नष्टक हो जायें और उनकी वृद्धि पर नियंत्रण पाया जा सके।
- फसल की प्रतिरोधी प्रजातियों के मानक बीजों की बुवाई की जाये।
- हमेशा बीज को शोधित करके बुवाई की जाये तथा बुवाई से पहले बीजों की अंकुरण जांच अवश्य करें।
- फसल में जैव विविधता (मिश्रित खेती) हो तथा समुचित फसल चक्र अपनाया जाये।
- सही बीज का चयन और उचित बीज दर का प्रयोग करें तथा बुवाई समय से व एकसार की जाये एवं पौधों से पौधों की वांछित दूरी रखी जाये।
- संतुलित एवं पर्याप्त पोषक तत्व वाली जैविक खाद (वर्मीकम्पोस्ट) एवं उपयुक्त जैव उर्वरकों का पर्याप्त मात्रा में उपयोग किया जाये।
- फसल एवं पेड़-पौधों के लिए पानी का उचित प्रबन्धन किया जाये।
- जंगली घास एवं खरपतवार जो कि कीटों का प्रजनन स्थान होता है को खेत और मेढ़ों से निराई-गुडाई करके समय से नष्ट करते रहें जिससे कीटों को अंडा देने से रोका जा सकता है।
- रोगग्रस्त पौधों या उनके भागों को नष्ट कर देना चाहिए।
- फसलों का बराबर सर्वेक्षण किया जाता रहे, ताकि किसानों को विभिन्न कीटों एवं रोगों आदि की स्थति के बारे में ज्ञान होता रहे, जिससे समय पर कीटों एवं रोगों का नियंत्रण किया जा सके।
- किसानों के प्रशिक्षण का उचित प्रबन्ध किया जाये, ताकि किसान समस्याओं को पहचानने और उससे सम्बंधित उस अवस्था को जानने की क्षमता ला सकें, जिस पर कीटों एवं रोगों का नियंत्रण आवश्यक हो जाता है।
- नाशीजीव के अण्डा-समूह एवं सुंडियों या इल्लियों को प्रारम्भिक अवस्था में ही नष्ट करते रहें।
- प्रकाश ट्रैप, फेरोमैन ट्रैप, यलो ट्रैप का उपयोग करके नाशीजीव के प्रौढ को नष्ट् किया जाये।
- नाशीजीव के प्राकृतिक शत्रुओं की संख्याय में वृद्धि करने के लिये उन्हेंर बाहर से लाकर खेतों में छोड़ा जाये।